Translate

Monday 5 November 2012

आपकी ख्वाईश क्या है ...?

                   आपकी ख्वाईश क्या है ...?

ख्वाईशें ...कितना प्यारा शब्द है ,कितना गहरा भी ! हमारे मन से जुड़ा,हमारे मन की हर बात को एक स्वप्न का सा अंदाज़ देता हुआ !स्वप्न पूरा हो जाए तो भी हमारे मन के अन्दर एक और स्वप्न को जन्म दे जाता है !या यूँ कहिये कि कुछ पाने की अनवरत  इच्छा !यह भी एक पूरी हुई नहीं कि एक और खड़ी हो जाती है !और हम बेखबर से एक के बाद एक इच्छा के पूर्ण होने और फिर दूसरी के पूरे होने तक इन ईच्छाओ के मायाजाल में बंधते चले जाते हैं !रुक ही नहीं सकते न !इंसान हैं और मन तो अपने वश में नहीं ! वश में ही कर पाते तो इंसान थोड़े न रहते ,भगवान न बन जाते ? अब इच्छा कहो या ख्वाईश, है तो पूरी भी करनी है !चाहे कितना भी  वक्त लगे ,पैसा लगे ,श्रम लगे ..पूरी तो करनी ही है किसी भी कीमत पर !पर क्या हम जानते हैं इन ख्वाइशों को पूरा करने की दौड़ में हम खुद से ही कितने दूर होते जा रहे हैं ? न खुद की होश न परवाह, बस भौतिक सुख सुविधाओं को जुटाने ,बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने की हौढ़ में ,अपना स्तर बढाने के लिए अपनों से ,आस पड़ोस वालो से ,दोस्तों से स्पर्धा में जी जान से जुटे ही रहते हैं !न जाने  कितनी ख्वाइशे या इच्छाएं जिनका कोई अंत नहीं और उनके लिए खुद का अंत ,इंसानियत का अंत ,रिश्तो का अंत तक करते रहते हैं हर पल हर कदम पर ! यह जो ख्वाईश शब्द है इसकी मिठास ,इसकी महत्ता, इसकी सौम्यता और इसकी रूमानियत सब खो गई है आज के भौतिक संसाधनों की चकाचौंध में ! एक वक़्त था जब इसी ख्वाईश शब्द का इस्तेमाल कुछ यूँ होता था ,''मेरी ख्वाईश है की मैं चाँद तारे तोड़ लाऊं तुम्हारे लिए '' या ''मेरी ख्वाईश है,मैं अपना पूरा प्यार  न्योच्छावर कर दूं तुम पर !'' या मेरी ख्वाईश है की मैं अपने देश के लिए अपनी जान दे दूं इत्यादि !परन्तु आज तो इसका स्वर्रूप  ही बदल गया है ! आज कुछ यूँ इसको परिभाषित करते हैं ..''मेरी ख्वाईश है कि मैं अपने बेटे को फलां के बेटे से भी अधिक पैसा ,शिक्षा या सुविधाएँ दूं  या फिर दिलो जान से की जाने वाली पाक मुहब्बत वासनाओं से ग्रसित ख्वाईश बन कर रह गई है ! देश के लिए जान देने की ख्वाईश अब कुर्सी पाने की ख्वाईश में ही सीमित हो गई है !यह है ख्वाईश का यथार्थ रूप !

                                           ऊपर वर्णित ख्वाईशों की जो भी हकीकत है, मैं भी उसी दुनिया में बसे इंसानों में से एक हूँ ! ख्वाईशे किसी न किसी रूप में आपके या मेरे दिल में अपने अपने भावों से विद्यमान हैं और इनसे इनकार करने की किंचित मात्र भी गुंजाइश नहीं है हमारे पास !लेकिन हम प्रयत्न तो कर सकते हैं न कि अपनी सुकून छिनती इच्छाओं को एक पूर्ण विराम दें !अपने ऊपर हावी न होने दें ! भौतिकता के धरातल से हटाकर अपनी ख्वाईशों को ज़िन्दगी के कुछ रंगीन पलों की फिर से वही रूमानियत दें जहाँ से इस शब्द का आगाज़ हुआ था !जब शायर ,लेखक ,प्रेमी लोग इस शब्द की रूह की भी तह तक जा कर इस को पूरा करने की न केवल हिम्मत  रखते थे बल्कि उस ख्वाईश को पूरा करने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते थे !हमें आज जान देने की ज़रुरत नहीं ,न ही हम सच पूछिए तो इतना कर सकते हैं !ज़रुरत है तो बस ख्वाईश को ख्वाईश बना रहने दें  ताकि एक एहसास बना रहे कि ''हाँ मेरी भी कोई ख्वाईश है ''!अपनी ख्वाईश को प्यार ,सदभावना,मौलिकता और हकीकत का जामा पहनाइए और लग जाइए इस शब्द की रूह को पहचानने में !ख्वाईशे हमारे ही मन का दर्पण होती हैं !जैसी ख्वाईश रखोगे वैसा ही उसका अक्स देख पाओगे !आवश्यकता केवल उसको सकारात्मकता देने की है नाकि प्रतिस्पर्धा और स्वार्थ की ! 


                                              मैंने अपनी ख्वाईश को अपने शब्दों में ढालकर लेखनी द्वारा आप तक पहुँचाने का एक छोटा सा प्रयास किया है ताकि मैं जितना समय कुछ  भौतिक सुख सुविधाओं को पाने के लिए सोचूं उससे बेहतर है अपना वही समय ज्ञान सीखने और  देने में ही लगा कर खुद को संतुष्ट कर सकूं ! 


आपकी ख्वाईश क्या है ? आपने क्या सोचा है ? जल्दी बताइयेगा !
                                                  
                                          
                                               

6 comments:

  1. आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (07-11-12) को चर्चा मंच पर | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

    ReplyDelete
  2. ख्वाहिशों से पगडंडियाँ ... फिर रास्ते बनते हैं . पर जब ख्वाहिशें लालसाओं में परिणत हो जाती हैं - फिर क्या आकाश और पाताल ! सपने सुख दें उतने ही अच्छे और सच्चे हैं

    ReplyDelete
  3. रश्मि प्रभा जी के कॉमेंट के बाद कुछ कहने को नहीं बचता...ख्वाहिशें रखें लेकिन केवल उन्हीं को जीने का उद्देश्य न बनाएँ.

    ReplyDelete
  4. हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी,कि हर ख्वाहिश पे दम निकले....
    :-)

    अनु

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्‍छा लिखा है आपने ...ख्‍वाहिशों की कमी नहीं ...

    ReplyDelete
  6. ख्‍वाहिशों की कमी नहीं रश्मी जी

    ReplyDelete