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Friday 23 November 2012

क्या तुम्हें याद है....?


             क्या तुम्हें याद है....?
क्या तुम्हें याद है उस दिन की वो हसीं शाम
जब तेरे साथ चंद  पलों को जिया था
जब लहरों की अठ्केलिओं को
एक दूजे के मन से निहारा था
जब तेरे कंधे पर सर रख कर
डूबते  सूरज को देखा था .....
डूबते सूरज ने जैसे कुछ इशारा किया था

हमसे उसने फिर आने का वादा किया था
उसी सूरज की लाली जैसी तेरी सुर्ख आँखे थीं
उन आँखों में कुछ शरारत सी थी
महकती  मदमस्त हवा थी मदहोश समां था
धडकनों पे हमारी इख्तियार न था
कभी पहले यूँ दिल बेक़रार न था
क़स कर  हाथ मेरा तुने थाम लिया था
बिन कहे ही बहुत कुछ जान लिया था
लहरों से भीगी किनारे की रेत थी.......
खामोश अलसाई सी हमारी चाल थी
हम  एक दूजे की बाहों में खोये  से थे
काश ये पल ये वक़्त यही रुक जाये
हम सदा एक दूजे के हो जाये
बिन कहे ही एक दूजे से वादे लिए थे
''खुदा ''से बस ये ही  एक दुआ की थी
बिखरी चांदनी की गवाही ली थी
तारो से भी साथ देने की ताकीद की थी
खामोश सागर से एक इल्तिजा की थी
गर तुझे भी प्यार है अपनी  लहरों से
गर जनता है तू भी प्यार की गहराई को
दुआ करना न  सहना पड़े कभी जुदाई को
जुदा गर हम हो गए तो दोष किसे देंगे
खुद को,''खुदा'' को या ''उसकी खुदाई '' को ?

2 comments:

  1. गर जनता है तू भी प्यार की गहराई को
    दुआ करना न सहना पड़े कभी जुदाई को
    बहुत खूब ... कहा है आपने

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  2. मोहब्बत में जुदाई होती है अकसर...मगर शिद्दत से प्यार करने वाले मिलकर ही रहते हैं...
    बहुत प्यारे एहसास हैं...

    अनु

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